अधर में पड़ा है तीर्थ के दूसरे चरण का निर्माण कार्य

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सफीदों, (एस• के• मित्तल): डेरा खानसर तीर्थ बाबा हेतराम के जिर्णोद्वार की मांग को लेकर नगर के समाजसेवियों ने राज्यपाल के नाम एक ज्ञापन एसडीएम पुलकित मल्होत्रा को सौंपा। ज्ञापन कार्यक्रम की अगुवाई तीर्थ के महंत राजेश स्वरूप शास्त्री और अखिल भारतीय ब्राह्मण संसद के अध्यक्ष संजीव गौतम ने की।

महाभारतकालीन ऐतिहासिक तीर्थ स्थल की अनदेखी

समाजसेवियों ने ज्ञापन में बताया कि सफीदों का यह महाभारतकालीन ऐतिहासिक तीर्थ स्थल — डेरा हंसराज तीर्थ खानसर, जिसे सर्पदधी के नाम से भी जाना जाता है, सफीदों के प्रवेश द्वार पर स्थित है। यह तीर्थ कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की परिधि में आता है और इसकी धार्मिक महत्ता अत्यधिक है।

राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने किया था वादा

करीब आठ वर्ष पहले प्रदेश के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने इस तीर्थ का दौरा कर इसके जीर्णोद्धार का वायदा किया था। इसके बाद 11 फरवरी 2019 को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तीर्थ के पुनर्निर्माण हेतु लगभग सवा तीन करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की थी।

पहले चरण का कार्य पूरा, दूसरा चरण अधर में

ज्ञापन में बताया गया कि पहले चरण के तहत करीब डेढ़ करोड़ रुपये की लागत से दो मंजिला भवन का निर्माण कराया गया था, लेकिन अब भी लगभग पौने दो करोड़ रुपये का कार्य शेष है। शेष राशि से तीर्थ स्थल के पवित्र सरोवर का जीर्णोद्धार, प्रवेश द्वार और अन्य प्रमुख निर्माण कार्य किए जाने थे, जो अब तक अधर में हैं।

निर्माण सामग्री का बजट बढ़ने से संकट गहराया

वर्तमान में निर्माण सामग्री की लागत लगातार बढ़ रही है, जिससे यदि कार्य शीघ्र शुरू नहीं हुआ तो परियोजना को पूरा करने के लिए अतिरिक्त बजट की आवश्यकता पड़ेगी। समाजसेवियों ने राज्यपाल से आग्रह किया कि तीर्थ के शेष निर्माण कार्य को जल्द शुरू करवाया जाए।

धार्मिक आस्था से जुड़ा स्थल

महंत राजेश स्वरूप शास्त्री ने कहा कि यह तीर्थ स्थल न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि हजारों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था से भी जुड़ा है। इसलिए प्रशासन को इसके जीर्णोद्धार में तेजी लानी चाहिए।

एसडीएम ने दिया उचित कार्रवाई का भरोसा

ज्ञापन लेने के बाद एसडीएम पुलकित मल्होत्रा ने कहा कि वे इस मामले में उचित कार्रवाई के लिए संबंधित विभागों को रिपोर्ट भेजेंगे और समाधान का प्रयास किया जाएगा।

सफीदों का ऐतिहासिक हंसराज तीर्थ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और इतिहास का प्रतीक भी है। इसके जिर्णोद्वार से श्रद्धालुओं और समाजसेवियों की वर्षों पुरानी मांग पूरी हो सकेगी।

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