पटना : बिहार में शनिवार को शुरू हुई जातीय गणना को उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ऐतिहासिक करार दिया है। उन्होंने कहा कि आज बहुत ही ऐतिहासिक काम की शुरुआत हुई। इसकी मांग लालू यादव पहले से ही करते रहे हैं, जिसे लेकर हम सड़क पर भी उतरे थे और मनमोहन सिंह की सरकार ने जाति जनगणना सर्वे भी कराया था, लेकिन भाजपा ने इसके डेटा को भ्रष्ट बता दिया था। ये लोग नहीं चाहते कि जाति जनगणना हो। अब शनिवार से इसकी शुरुआत हो गई है। इससे सही डेटा आएगा तो हम उसी हिसाब से बजट का स्वरूप तैयार करेंगे और कल्याणकारी योजनाएं बनेंगी। उप मुख्यमंत्री ने कहा पिछड़ा, गरीब और दलित विरोधी भाजपा शुरू से ही इसका विरोध करती रही है। लेकिन नीतीश कुमार ने राजद की उस मांग को जरूरी समझा और आज इसकी शुरुआत हो रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा नहीं चाहती थी कि जातीय जनगणना हो। यहां तक कि जब राजद की मांग पर नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर देश स्तर पर जाति जनगणना की मांग तो भाजपा सरकार ने संसद में ही इसे नकार दिया। जातीय जनगणना को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे समाज में जो अंतिम पायदान पर है, वह मुख्य धारा में आ जाएगा। जब समाज के सभी वर्गों के लोगों के बारे में सही वैज्ञानिक डेटा आ जाएगा तब उस अनुरूप उन वर्गों के उत्थान के लिए काम किया जा सकेगा। जो समाज में सबसे कमजोर और पिछड़ा रहेगा उसे टारगेट करके उनकी बेहतरी के लिए काम हो सकेगा। राज्य में विकास की दिशा में यह बड़ा बदलाव लायेगा। भाजपा इसी से डरी हुई है। भाजपा के लोग घबराए हुए हैं। यही कारण है कि भाजपा ने हमेशा ही जातीय जनगणना का विरोध किया है। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि जातीय जनगणना की जरूरत को देखते हुए बिहार सरकार द्वारा विधानसभा में इसके पक्ष में 2018 और 2019 में दो सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किए गए। इसके बाद जून 2022 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें सर्वसम्मति से इसे आगे बढ़ाया गया। बिहार सरकार का कहना है कि गैर-एससी और गैर एसटी से संबंधित आंकड़ों के अभाव में अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या का सही तरीके से आकलन करना मुश्किल है। वहीं, जनगणना की मांग करने वाले लोगों का भी कहना है कि कोटा को संशोधित करने के लिए जाति आधारित जनगणना की सख्त जरूरत है।