महेश कुमार सिन्हा
पटना। बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन के 22 साल बाद अब पृथक मिथिला राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसी अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर मिथिलवासियों ने रविवार को राजधानी पटना में शक्ति प्रदर्शन करते हुए प्रोटेस्ट मार्च निकाला। मिथिला के छात्र और क्षेत्र के विकास के लिये संकल्पित मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन (एमएसयू) के बैनर तले आयोजित मार्च में बड़ी संख्या में मिथिलवासियों ने हिस्सा लिया। मार्च गांधी मैदान से शुरू होकर जेपी गोलंबर से होते हुए राजभवन के लिए निकला। इस बीच डाक बंगला के पास तैनात मजिस्ट्रेट और सुरक्षाकर्मियों ने मार्च को रोक दिया। इसके बाद मार्च में शामिल लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया। डाकबंगला पर ही प्रदर्शनकरियों और अधिकारियों के बीच बातचीत हुई, जिसके बाद पांच लोगों के प्रतिनिधिमंडल को राजभवन में वार्ता के लिये ले जाने का आश्वासन मिलने पर प्रदर्शन समाप्त कर दिया गया। प्रदर्शऩकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बाद मे राजभवन जा कर राज्यपाल के नाम मिथिला राज्य के गठन की मांग को लेकर एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में एमएसयू ने कहा है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 में यह प्रावधान है कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहां बोली जाने वाली भाषा और संस्कृति के आधार पर होना चाहिये। इस अधिनियम के अनुरूप 14 राज्य और छह केन्द्र शासित प्रदेश बनाये गये थे। वर्तमान में 28 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। एमएसयू के अनुसार मिथिला भू-भाग में 22 जिले बिहार और 7 जिले झारखंड में बसे हैं। उन सबकी एक भाषा, एक संस्कृति और मिलता-जुलता एक संस्कार है। इनकी कुल जनसंख्या तकरीबन 8 करोड़ है। यह भू-भाग राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत अलग राज्य का दर्जा पाने की पात्रता रखता है। लेकिन अभी तक यह उससे वंचित है। मिथिला स्टूडेंट यूनियन के अनुसार भौगोलिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी मिथिला अलग राज्य का दर्जा पाने की योग्यता रखता है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि शासक वर्ग मिथिला की समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर नहीं रहता है। इस कारण स्वतंत्रता के कुछ वर्षों बाद से ही इसका आर्थिक ढांचा धीरे-धीरे नष्ट होने लगा। अब तो करीब-करीब पूरी तरह ध्वस्त ही हो गया है। बाढ़ से कृषि चौपट होती रहती है तो नेताओं की उदासीनता की वजह से उद्योग-धंधे समाप्त हो गये हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए अलग मिथिला राज्य आवश्यक है।यूनियन का स्पष्ट कहना है कि मिथिला के सर्वांगीण विकास के लिए यही एकमात्र विकल्प है। गौरतलब है कि मिथिला राज्य की मांग अंग्रेजों के जमाने से ही की जा रही है। इस बीच बिहार से उड़ीसा और झारखंड अलग होकर राज्य बना है पर मिथिला की माग अभी तक पूरी नहीं हुई है। यही वजह है कि अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर समय-समय पर धरना प्रदर्शन और मार्च का आयोजन किया जाता है। अब यह मांग जोर पकड़ने लगी है।बिहार में जहां मिथिला राज्य की मांग जोर पकड़ रही है,वहीं बीच-बीच में भोजपुर, अंगिका और मगध राज्य की मांग भी उठती रही है।
लेखक : न्यूजवाणी के बिहार के प्रधान संपादक हैं और यूएनआई के ब्यूरो चीफ रह चुके हैं