पटना। कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को मिली करारी हार के बाद सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस ने इस हार को शराबबंदी कानून से जोड़ कर एक तरह से नीतीश कुमार को आईना दिखा दिया है। सच्चाई भी है कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद गरीब तबके के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी बढ़ी है। उसका कारण यह है कि खासकर ग्रामीण इलाकों में गरीबों के खिलाफ पुलिसिया दमन बढ़ा है। जानकार भी बताते हैं कि शराबबंदी कानून लागू होने के बाद करीब चार लाख से अधिक लोगों को जेल भेजा गया है, जिसमें ज्यादातर गरीब लोग ही हैं। वह चाहे शराब पीने के मामले में जेल भेजे गये हों अथवा शराब बेचने के आरोप में। ग्रामीण इलाकों में हालात तो ऐसे हो गये हैं कि शराब के नाम पर पुलिस किसी के भी घर में किसी भी वक्त घुसकर शराब खोजने लगती है, इसमें गरीब परिवारों के बहू-बेटियों के इज्जत का भी ख्याल नही रखा जाता है। जिसको लेकर लोगों के बीच नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी बढ़ी है। यह कुढ़नी चुनाव प्रचार के दौरान भी दिखाई दिया था, लोगों ने इसके प्रति नाराजगी जतायी थी। अब जबकि चुनाव परिणाम सामने आ गया है, ऐसे में कांग्रेस विधायक दल के नेता अजित शर्मा ने खुलकर कहा है कि यह हार शराबबंदी कानून के कारण हुई है। इसपर फिर से विचार किये जाने की जरूरत है। उधर, राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ये नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स का द इंड है। यानि बिहार में उनकी राजनीति खत्म होने की कगार पर पहुंच गयी है। विश्लेषकों की मानें तो नीतीश कुमार के राज में शराबबंदी, भ्रष्टाचार, अफसरशाही से जनता त्रस्त हो चुकी है। नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रोश 2020 के विधानसभा चुनाव में भी था। तभी जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी थी। हालांकि उस चुनाव के बाद नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता भाजपा पर साजिश का आरोप लगाने लगे थे। लेकिन नीतीश कुमार के अलग होने के बाद मोकामा, गोपालगंज और कुढ़नी में भाजपा के प्रदर्शन में सुधार से ये साफ होने लगा है कि भाजपा को ही नीतीश कुमार के साथ रहने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा था। जाहिर है भाजपा के हौंसले बुलंद होंगे। उसे लग रहा है कि वह अपने दम पर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और उनके सात पार्टियों के महागठबंधन को परास्त कर सकती है। वहीं, महागठबंधन के भीतर समीकरण गड़बड़ होगा। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों को पहले से ही सरकार से कई नाराजगी है। अब वे खुल कर बोलेंगे। उधर, राजद नेताओं के एक वर्ग को पहले से ही लग रहा था कि नीतीश कुमार के साथ जाने से नुकसान हुआ है। ऐसे में राजद नेता भी अब सामने आ सकते हैं। उधर जदयू नेताओं की एक बड़ी जमात पहले से ही इस बात से नाराज है कि नीतीश ने राजद के साथ तालमेल क्यों किया? अब उनकी जुबान भी खुल सकती है। कुल मिलाकर कहें तो आगे आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में नया खेल होने की संभावना व्यक्त की जाने लगी है।