Wednesday, September 20, 2023

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बिपुल कालिता: हथियारों के दम पर करना चाहते थे समाज का “सफाया”, अब कर रहे साफ सफाई का काम

शिवसागर : प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन उल्फा के पूर्व स्वयंभू लेफ्टिनेंट बिपुल कालिता एक समय किशोरावस्था में बंदूकों के जरिए समाज का “सफाया” करने निकले थे, लेकिन उनकी परिपक्वता उन्हें वापस मुख्यधारा में ले आई और अब वह असम में अपने गृह नगर शिवसागर में कचरा साफ करने से जुड़े एक उद्यमी बन गए हैं।पचास वर्ष से अधिक आयु के हो चुके कालिता “संप्रभु असम” की स्थापना के अपने सपने को साकार करने के लिए लगभग 12 वर्ष तक यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के लिए काम करते रहे। उन्होंने वर्ष 2000 में हथियार डाल दिए और तब से राज्य के पूर्वी हिस्से में अपने पैतृक स्थान पर अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ जीवन बिता रहे हैं। शुरुआती कुछ वर्षों तक छुटपुट काम करने के बाद, कालिता ने 2016 में एक उद्यमी बनने का फैसला किया और सात-आठ भागीदारों के साथ घर-घर जाकर कचरा एकत्र करना शुरू कर दिया।कालिता ने कहा, “हमने शिवसागर शहर के 14 वार्ड में कचरा संग्रह का काम शुरू किया। हमने डिब्रूगढ़ में उचित अपशिष्ट निपटान के बारे में जागरूकता अभियान चलाया। हालांकि हम शुरुआत में सात-आठ लोग थे, जिनमें से अधिकतर ने यह काम छोड़ दिया क्योंकि वे इसे एक उपयुक्त नौकरी नहीं मानते थे। मैंने अपने एनजीओ ‘रूपांतर’ के साथ अकेले इसे जारी रखा और जल्द ही छह अन्य नागरिक समाज संगठनों से मदद मिली।”असम में गैर-सरकारी संगठन शहरी क्षेत्रों में घर-घर जाकर कचरा संग्रह करने का कार्य कर रहे हैं।कालिता के पास सात वाहन और कर्मचारी हैं, जिनमें ड्राइवर और अन्य सहयोगी शामिल हैं। इनका काम कचरा इकट्ठा करना और निपटान करना होता है।उन्होंने कहा, “हमारे साथ 20-25 महिलाएं भी काम करती हैं। कचरा संग्रहण के अलावा, हमारे पास कचरे को खाद में बदलने की दो मशीन हैं। ये शिवसागर नगरपालिका बोर्ड द्वारा लगाई गई थीं।”मशीन के आपूर्तिकर्ता नयी दिल्ली से आए थे और कालिता तथा उनकी टीम को कचरे को खाद में बदलने के लिए प्रशिक्षित किया था, लेकिन इस प्रक्रिया के लिए आवश्यक रसायन राष्ट्रीय राजधानी से मंगाना पड़ता है, जो उनके लिए एक समस्या रही है।उग्रवादी से उद्यमी बने कालिता के लिए “वित्तीय संकट सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है” क्योंकि उनका उद्यम केवल घरों और व्यावसायिक भवनों से एकत्र किए गए मामूली मासिक शुल्क पर निर्भर है।उन्होंने कहा, “हमें प्रति परिवार प्रति माह 60 रुपये मिलते हैं, जिसमें से हम नगरपालिका बोर्ड को 10 रुपये का भुगतान करते हैं। व्यावसायिक इमारतें मासिक शुल्क के मामले में थोड़ा अधिक भुगतान करती हैं लेकिन हमें इसका 50 प्रतिशत बोर्ड को देना होता है।”

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