निशान बाकी रहेंगे मेरे जाने के बाद भी
मेरी कहानी को भुलाना संभव नहीं होगा
आज राजनीति का जो स्तर है उसमें यह यकीन करना मुश्किल है कि 15 जून 1935 को आज ही के दिन एक ऐसी शख्सियत ने जन्म लिया था जिसके कर्मों ने लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में अपनी छाप छोड़ी और उनके कार्यों के कारण उन्हें राजनीति का संत कहा गया। मैं बात कर रहा हूं तीन बार धनबाद से सांसद और सिंदरी के विधायक रहे अरुण कुमार राय यानि एके राय की। कॉमरेड एके राय की। एक ऐसे आदमी की जिसे दुनिया का हर ऐशो-आराम सुलभ हो सकता था पर जो जीवन भर मजदूरों की तरह रहा। कई दफा सांसद और विधायक रहने के बाद भी उनका न कोई बैंक बैलेंस था, न मकान न और गाड़ी। मासस का कार्यालय ही इनका बसेरा था। उनका पूरा जीवन सादगी, ईमानदारी और आदर्श से भरा रहा। जब वे सांसद थे। तब भी एके राय रेल के सामान्य डिब्बे में सफर करते थे। सांसदों का वेतन बढ़ने का मामला जब संसद में उठा। तब सिर्फ एके राय ही एकमात्र ऐसे सांसद थे जिन्होंने इसका विरोध किया था। वे जब सक्रिय राजनीति में थे तो हमेशा कहते थे की देश के मजदूर और गरीबों को जब दरी तक नसीब नहीं है। तो हम कैसे शानदार पलंग पर सो सकते हैं। उनका पूरा जीवन गरीबों, मजदूरों और आदिवासियों के लिए संघर्ष करते गुजर गया। जीवन भर गोल गला कुर्ता, टखनों तक पायजामा तथा रबड़ का चप्पल पहना। कभी कोई शौक नहीं रहा। सोते वक्त घर के कमरे में लगे पंखे को भी कभी नहीं चलाया।एके राय ने मजदूरों के लिए कई लड़ाईयां लड़ी। सुदामडीह वाशरी के स्लरी मजदूरों के लिए 18 वर्षों तक लड़ाई लड़कर कोयला कंपनी में मजदूरों को स्थाई नौकरी दिलाई थी। उनके राजनीतिक विरोधी भी उनके सादगी के कायल थे। जनता की सेवा के लिए उन्होंने खुद का परिवार भी नहीं बसाया। ऐसे जन-जन के नेता एके राय का जन्म 15 जून 1935 में पूर्वी बंगाल के राजशाही जिले के सापुरा नामक गांव में हुआ था। यह स्थान अब बांग्लादेश में है। 1951 में उन्होंने नवगांव विलेज स्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद वर्ष 1953 में वेल्लूर के रामकृष्ण मिशन स्कूल से आइएससी की। वर्ष 1955 में कोलकाता के सुरेंद्रनाथ कालेज आए। यहां से बीएससी की। 1959 में कोलकाता विवि से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी। 1961 में सिंदरी पीडीआइएल में नौकरी की। 1966 में कोयलांचल के कामगारों की दशा देख दुखी हुए और नौकरी छोड़ वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर किसान संग्राम समिति तथा मार्क्सवादी समन्वय समिति का गठन किया। वर्ष 1977, 80 और 89 में धनबाद के सांसद रहे। वर्ष 1967, 69, 72 में तीन बार सिंदरी के विधायक भी बने।झामुमो के गठन के समय शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर आंदोलन किया। जेपी आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। एके राय प्रखर पत्रकार भी थे। झारखंड आंदोलन तथा राजनीति पर वे हमेशा लिखते रहे। झारखंड और लालखंड, योजना और क्रांति इनकी पुस्तक है। अंग्रेजी में बिरसा से लेनिन और दलित क्रांति के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कई आलेख भी लिखे। उनका जीवन एक मशाल की तरह था जो लोगों को अंधेरे में दिशा दिखाता रहा और आगे भी दिखाता रहेगा।