विवेकानंद कुशवाहा
बीते रोज एक भाई का फोन आया कि अपने हिसाब से आप बिहार की कुछ समस्याएं बताइए, जिनको पॉलिटिकल कैंपन में एड्रेस करना जरूरी हो। मैं बाहर पिकनिक में था, तो जो कुछ बातें रैंडमली दिमाग में आयी उसे शेयर कर दिया।असल में पूछिये तो बिहार संभावनाओं का प्रदेश है। बिहार के लोग देश की श्रम शक्ति हैं। सिर्फ शारीरिक श्रम में ही नहीं, बल्कि मानसिक श्रम में भी बिहारी अव्वल हैं। इसके साथ-साथ आज बिहार की हर गली, हर शहर में अवसर ही अवसर हैं। बस, उन अवसरों को जो दिशा दे सकते हैं, वे बिहार से बाहर बैठकर बिहार को और बिहार की सरकार को कोसते रहते हैं। 1990 के बाद से ही सरकार की भूमिका इस देश में घटती जा रही है। मोदी काल में यह भूमिका और कम हो चली है। ऐसा लगता है कि सरकार का काम बस मॉनिटर का रह गया है। टैक्स वसूली के लिए कुछ विभाग हैं, अपोनेंट को काबू में रखने के लिए कुछ विभाग हैं। बाकी, देश का पासपोर्ट भी टीसीएस वाले बना कर दे रहे हैं। खैर, आप आश्चर्य करेंगे कि किसी भी तरह काम के जरिये 500 रुपये तक प्रतिदिन कमाने के लिए भी लोग बिहार से बाहर पलायन को तैयार रहते हैं। ऐसे कामों में मजदूरी का ग्रोथ स्टैग्नेंट होता है। हां, उन मजदूरों में से कुछ ठीकेदार जरूर बन जाते हैं, जो पैसे बना लेते हैं। बिहार मूल रूप से किसानों और मेहनतकश मजदूरों का प्रदेश है। बाढ़ और सुखाड़ जैसी आपदाओं के काल को छोड़ दिया जाये, तो बिहार की लगभग भूमि कृषि योग्य है, जो अच्छी फसल दे सकती है। यह बिहार के औद्योगीकरण की राह का बड़ा संकट है। यह तय है कि यहां बड़े-बड़े कल कारखाने नहीं लग सकते हैं, लेकिन मीडियम और स्मॉल एग्री बेस्ड उद्योग के लिए बिहार से अच्छी जगह कोई और हो ही नहीं सकती। लेकिन, समस्या यह है कि बिहारी या तो सरकार के भरोसे बैठे हैं या अंबानी, अडानी जैसे गुजरातियों के भरोसे। गुजरातियों ने पहले गुजरात में उद्योग लगाये, मराठियों ने महाराष्ट्र में, फिर सुविधानुसार उसका देश में विकास किया। आज देश की सभी बड़ी औद्योगिक इकाइयां इन्हीं लोगों के पास हैं। बस मारवाड़ी और पारसी ने जहां ठिकाना मिला, वहीं व्यापार में लग गये, लेकिन ये दोनों समाज आपसी को-ऑपरेशन की मिसाल पेश करते हैं। ऐसे में जो बिहारी ठाठ से बाहर बैठे हैं और छठ के समय बिहारी होने का फर्ज समझ कर कुछ दिनों के लिए बिहार आ कर, फिर वापस चले जाते हैं। जिनके लिए पलायन बाध्यकारी नहीं है। इन जैसों की बिहार में बनी कोठियों में ताले लटके हुए होते हैं और कोई केयर टेकर उसका ख्याल रख रहा होता है। यदि आप चाहते हैं कि बिहार तरक्की करे, तो सबसे पहले आपको ही आगे आकर बिहार आना होगा। बिहार को खुशहाल बनाने की जिम्मेदारी आपकी है। आप सरकार से सहयोग मांगें, लेकिन पहला कदम आपको ही उठाना होगा। कोई गुजराती आपके लिए क्यों सोचेगा, जब आपके यहां से सस्ते लेबर उसको मिल जा रहे हैं। वे तो आपकी स्थिति को जस की तस बनाये रखने में पैसे लगाएंगे।अब बिहार के गांव-गांव तक सड़क, बिजली, पानी, इंटरनेट आदि पहुंच गये हैं, अगर आप उन गांवों में आकर कोई सस्टेनेबल एग्री बिजनेस या कुछ भी शुरू करते हैं, तो उस गांव के लोगों को 500 रुपये प्रतिदिन कमाने तो बाहर नहीं जाना होगा। आप ही कर सकते हैं, क्योंकि बिहार में खेती योग्य भूमि का अधिग्रहण उद्योगपतियों के बस का काम नहीं है। यूरोप के कई देशों ने इस रास्ते से सफलता और विकास की गाथा लिखी है। को-ऑपरेशन से खुद को समृद्ध किया है। बिहार की ओर लौटिए, अवसर आपके स्वागत को खड़े हैं।
लेखक : सीनियर जर्नलिस्ट है