Thursday, November 30, 2023

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भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है 26 जनवरी 1950

डॉ जंगबहादुर पांडेय

महाप्रलय की प्रतिध्वनियों में भी जो जनता सोती है,

यह 26 जनवरी आज उनको दे रही चुनौती है।

नहीं जगे,तो नहीं जगे, ये किस्मत पर रोने वाले,

नहीं जगे,तो नहीं जगे, घर फूंक हवन करने वाले।

जिन बेशर्मो पर शर्मिंदा शर्म स्वयं भी होती है,

यह 26 जनवरी आज उनको दे रही चुनौती है।

डा शिव मंगल सिंह’सुमन’

26 जनवरी 1950 भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। जनता के हाथों में सता की बागडोर आयी, लोकतंत्रात्मक पद्धति का महत्व स्वीकृत हुआ। शताब्दियों की दासता की श्रृखंला टूटी।आज ही के दिन हमारा देश संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र घोषित हुआ था।आज ही के दिन हमारा संविधान लागू हुआ था।आज के ही दिन मानव मानव के मध्य दुर्भेद दीवार ध्वस्त हुई थी और सामान अधिकार पाकर सीना तानकर हम कह उठे थे-

मेरा देश,देश का मैं,देश मेरा जीवन प्राण,

मेरा सम्मान मेरे देश की बड़ाई में। गिरिधर शर्मा

गणतंत्र का तात्पर्य ऐसे राज्य से है, जहां राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने वाले प्रतिनिधियों का एक निश्चित अवधि के लिए चुनाव जनता ही करती है।विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के रुप में भारत ने पिछले 73 वर्षों में अपनी पहचान स्थिर की है।न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के संकल्प के साथ भारतीय गणतंत्र ने अपने को व्यवस्थित किया है। जैसे हर घटना के पीछे एक कहानी होती है,वैसे ही भारतीय गणतंत्र से भी अनेक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। भारत की आजादी के कुछ सप्ताह पहले तक भारत इस बात पर लगभग सहमत था कि भारत का राष्ट्राध्यक्ष एक गवर्नर जनरल होगा, जो भारत में ब्रिटिश सिंहासन के प्रतिनिधि के रुप में काम करेगा, लेकिन 15 अगस्त 1947 को स्वाधीनता प्राप्ति के तुरंत बाद संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि भारत को गणतंत्र होना चाहिए;जिसका अध्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से जनप्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित होगा और भारत का राष्ट्रपति किसी भी प्रकार से ब्रिटिश सिंहासन के प्रति उतरदायी नहीं होगा। यह निर्णय एक ठोस कदम था, जिससे भारत का गणतांत्रिक स्वरुप स्पष्ट हो गया। स्वाधीनता के तत्काल बाद भारत की संपूर्ण सत्ता गवर्नर जनरल में सिमटी हुई थी,जो भारतीय प्रधानमंत्री के परामर्श से ब्रिटिश सार्वभौम द्वारा चुने गए लार्ड माउंट बेटेन 15अगस्त 1947 से जून 1948 तक भारत के गवर्नर जनरल बने रहे।उनके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारतीय गवर्नर जनरल बने रहे और इस पद पर तब तक बने रहे, जब तक डा राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति का कार्यभार नहीं संभाल लिया।संविधान सभा ने कई दिनों के विचार विमर्श के बाद भारत के लिए धर्म निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की प्रस्तावना  बनायी।इसके साथ ही भारतीय इतिहास में  26 जनवरी 1950 से भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र बन गया।

प्रस्तावना में कहा गया है कि

“हम भारत के लोग ,भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए,तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई०को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।” जब महात्मा गांधी 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन जा रहे थे, तो मार्ग में किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि ‘आप भारत के लिए कैसा संविधान पसंद करेंगे।’बापू का उत्तर था ‘मैं भारत के लिए ऐसा संविधान पसंद करूंगा, जो भारत को संरक्षण और दासता से मुक्त कर दे तथा उसे सब प्रकार का अधिकार दे।’ गांधी जी के सपनों के भारत को भारतीय संविधान ने साकार करने का प्रयास किया है।भारत के गणतांत्रिक स्वरूप को स्पस्ट करने की दृष्टि से संविधान की उपर्युक्त प्रस्तावना में सब कुछ कथित और वर्णित है।इस प्रस्तावना में कही गई बातों के अनुरूप भारतीय गणतंत्र का विकास पिछले 73 वर्षो में हुआ है।न्याय,स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व की जिन भावनाओं से भारतीय संविधान जुड़ा है, उन सबके विकासात्मक संकेत गणतंत्रात्मक देशों मे मिलते हैं।गणतंत्र दिवस एक राष्ट्रीय पर्व है और यह हमारी परम्परा और विरासत की पहचान है।इस अवसर पर यह स्वाभाविक ही है कि बीते 73 वर्षो का पुनर्मूल्यांकन किया जाए और आगामी दिनों का मार्ग प्रशस्त किया जाए।समय आ गया है कि हम देश की अखंडता,संप्रभुता और एकता का सम्यक् ध्यान रखते हुए अपने गणतंत्र का विकास करें। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस है।राष्टपिता महात्मा गांधी ने गणतंत्र का अर्थ बतलाया था, जिसमें निम्न से निम्न और उच्च से उच्च व्यक्ति को आगे बढ़ने का समान अवसर मिलता है।हम सभी भारतीय अपने दिल पर हाथ रखकर सोंचे,कि राष्टपिता महात्मा गांधी के निकष पर हमारा गणतंत्र खरा उतर रहा है अथवा नहीं। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कहा था कि स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है ,लेकिन हमारी मान्यता है कि यह हमारा कर्मसिद्ध अधिकार भी है।सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने ठीक ही कहा था कि स्वतंत्रता के विजयनाद एक दिन में नहीं प्राप्त किए जाते,क्योंकि स्वतंत्रता की देवी बड़ी कठिनाई से संतुष्ट और तृप्त होती हैं।वह भक्तों की कठोर और दीर्घव्यापी तपस्या चाहती हैं और परीक्षा लेती हैं।उसका मूल्य निरंतर सावधानता है।उसकी प्राप्ति से भी कठिन है ,उसका संरक्षण।उसके संरक्षण के लिए हर क्षण तलवार के धार पर चलना पड़ता है। जिस राष्ट्र का बच्चा बच्चा सचेष्ट नहीं रहता ,उसकी आजादी क्षण भर में छिन जाती है।राष्ट्र कवि दिनकर ने ठीक ही लिखा है:

 आंधियां नहीं जिसमें उमंग भरती हैं,

छातियां जहां संगीनों से डरती हैं,

शोणित के बदले जहां अश्रु बहता है,

वह देश कभी स्वाधीन नहीं रहता है।

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि 26 जनवरी साल में एक बार आती है।हमें रावी के तट की याद दिलाने,हमें अपने संविधान के शानदार आदर्शो को अपनाने के लिए।आज हमारे लिए आवश्यक है कि हम अपने संविधान की सुरक्षा कर उसे नृशंस हत्यारों के क्रूर हाथों से बचाएं, नहीं तो किसी दिन पागल गोडसे की विषैली परम्परा उभरेगी और हमें फिर किसी गांधी के बलिदान का भागी बनना पड़ेगा।हमारा प्रजातंत्र और गणतंत्र केवल शाब्दिक नहीं, वास्तविक है।जब तक हम अपने देश से दरिद्रता, अशिक्षा, बेकारी,अनैतिकता तथा आत्महीनता की झाड़ियों को दूर नहीं कर सकेंगे, तब तक जनतंत्र और गणतंत्र के अरूणोदय का सुन्दर आलोक नहीं प्राप्त कर सकेंगे।हमारा गणतंत्र  प्राचीन तथा विश्व में महान पवित्र और अनुकरणीय है।

लेखक : न्यूजवाणाी के सलाहकार संपादक है

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