Thursday, November 30, 2023

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रामकथा भारत-मॉरीशस का सांस्कृतिक महासेतु और रामायण गुरु पं राजेंद्र अरुण

 

डॉ जंगबहादुर पांडेय

यों तो मॉरीशस में हिंदी के अनेक विद्वान हैं जैसे डॉ अभिमन्यु अनत, डॉ सरिता बुधू, डॉ जगदीश गोवर्धन पं. वेणीमाधव रामखेलावन और पं. राजेंद्र अरुण लेकिन पं.राजेंद्र अरुण मॉरीशस में रामायण गुरु और तुलसी के नाम से प्रसिद्ध हैं। मॉरीशस में स्थापित रामायण केन्द्र के संकल्पक और व्यवस्थापक पं.राजेंद्र अरुण ही हैं। 29 जुलाई 1945 को भारतवर्ष  के उत्तर प्रदेश के फैजाबाद  जिले के नरवापिताम्बरपुर में जन्मे पं.राजेंद्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना।सन् 1973 में वे मारीशस गये और मारीशस के तत्कालीन प्रधान मंत्री डॉ सर शिवसागर राम गुलाम के हिंदी पत्र ‘जनता’ के संपादक बने।उन्होंने वहां रहते हुए समाचार एजेंसी यूएनआई और हिंदुस्तान समाचार जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया। उन्होंने नूतन ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को साकार कर रहे हैं।पं. राजेंद्र अरुण ने अब तक राम कथा के प्रचार और प्रसार के लिए 7 पुस्तकों की रचना की है;जो प्रभात प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हैं। इनके नाम हैं हरिकथा अनंता, भरत गुण-गाथा, जग जननी जानकी, रोम-रोम में राम, तजु संशय भजु राम, रघुकुल रीति सदा—और अथ कैकेयी कथा है। अपनी रामकथा परक कृतियों से वे मॉरीशस में निरंतर रामकथा की मंदाकिनी प्रवाहित कर मॉरीशस के जन मानस को संस्कारित और समुज्वलित करने में निरंतर लगे हुए हैं। पं.राजेंद्र अरुण का आकस्मिक निधन 76 वर्ष की आयु में 21 जून 2021  को हो गया।उनके आकस्मिक निधन पर शोक प्रकट करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पं.राजेंद्र अरुण भारत और मॉरीशस के सांस्कृतिक दूत थे।उनके निधन से अपूरणीय क्षति हुई है। प्रत्येक वर्ष वहां दशहरे के पावन अवसर पर रामलीला का आयोजन होता रहा है।अब रोज वहां के लोग मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का नाम गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस के माध्यम से सुना करते हैं। समय समय पर भारत के संत और संन्यासी भी मारीशस जाकर रामकथा के द्वारा वहां के लोगों को राम के संदेशों और आदर्शों से रूबरू कराते हैं।ऐसे संत महात्माओं में रामकथा के परमाचार्य जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी, रामकथा सम्राट मुरारि बापू,युग तुलसी पं.रामकिंकर उपाध्याय जी, योगगुरू स्वामी रामदेव बाबा,महामण्डलेश्वर स्वामी उमाकांतानंद सरस्वती जी महाराज का नाम सम्मान पूर्वक लिया जा सकता है। मॉरीशस के लोग विशेषकर भारतवंशी अपने नाम के साथ ‘राम’  को जोड़ना गौरव की बात मानते हैं। यही कारण है कि वहां के प्रथम प्रधानमंत्री डॉ सर शिवसागर ने अपने को राम का गुलाम स्वीकार किया और उनके सुपुत्र और उतराधिकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ नवीन चंद्र ने भी अपने नाम के साथ रामगुलाम की संज्ञा धारण की है।भारतीय देवी-देवताओं के नाम भी वहां के लोगों को प्रिय रहे हैं। इसीलिए वहां के पूर्व राष्ट्रपति का नाम भी अनिरूद्ध जगन्नाथ है। मॉरीशस के पूर्व मंत्री और इण्डियन डास्पापोरा के संकल्पक सह अध्यक्ष डॉ जगदीश गोवर्धन भी राम कथा और भोजपुरी भाषा के प्रचार प्रसार में जुटे रहते हैं। उन्होंने मारीशस में इस संदर्भ में एकाधिक सम्मेलन कर हिंदी, भोजपुरी और रामकथा को सुप्रतिष्ठित किया।मारीशस सरकार के पूर्वमंत्री दयालाल बसंत के इस विचार से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ कि ” यदि प्रारंभ में गोस्वामी जी की कृतियों का विशेषकर रामचरितमानस और महर्षि वेद व्यास कृत भगवद्गीता का सहारा न मिला होता,तो हमारे देश में भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य और भाषाओं का जो समुज्ज्वल रूप दिखाई दे रहा है,वह नहीं दिखाई पड़ता। वस्तुतः रामकथा के माध्यम से तुलसी ने सभी को जोड़ने का सफल प्रयास किया है और कलियुग के पापों को धो डाला है।

बुध विश्राम सकल जन रंजनि।

राम-कथा कलुष विभंजनि।

तुलसी के मानस ने भारत तथा मारीशस को जोड़कर साहित्यिक सांस्कृतिक संबंधों की श्रृंखला को मजबूत किया है। मॉरीशस रामकथा का ऋणी देश है। रामकथा की महत्ता इस बात से भी है कि विवाह मंडप में मानस की 7 चौपाइयां गाकर पुरोहित वर-कन्या का विवाह संपन्न करा देते हैं।इतना ही नहीं मॉरीशस के डाक टिकट पर हिंदी के चार शब्दों का एक छोटा वाक्य “कैथी” लिपि में ‘राम गति देहु सुमति’ लिखा हुआ है। यह मांगलिक वाक्य बिहार और उत्तर प्रदेश की पाठशालाओं में प्राचीन काल में विद्या-अध्ययन आरंभ करते हुए बताया जाता था और इसी से शिक्षा आरंभ होती थी। यह सुखद आश्चर्य है कि मारीशस में शिक्षा आरंभ के समय आज भी यही राम परक वाक्य प्रचलित है। महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में यह घोषणा की है कि

यावत् स्थास्यंति गिरय:,सरितस्च महीतले।

तावत् रामायण कथा,लोकेषु प्रचरिस्यति। अर्थात् जब तक पृथ्वी पर पर्वतों और नदियों का अस्तित्व रहेगा,रामकथा लोक में प्रवाहित होती रहेगी।अस्तु रामकथा भारत और मॉरीशस का सांस्कृतिक महासेतु है।

 

 

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