रांची : रांची कॉलेज (वर्तमान में डीएसपीएमयू) के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ महाकालेश्वर प्रसाद का निधन गुरुवार को प्रात: एक बजे जमशेदपुर में हो गया। वे लगभग 84 वर्ष के थे। डॉ प्रसाद रांची में एदलहातु स्थित आवास में अपनी पत्नी के साथ निवास करते थे। वे अपनी पुत्री के जमशेदपुर स्थित आवास पर मिलने गये थे। स्वास्थ्य के मामले में भी भले चंगे थे, लेकिन रात में अचानक हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। उनके परिवार में उनकी पत्नी सहित पांच पुत्रियां हैं । सभी विवाहिता हैं और अपने-अपने परिवार के साथ रहती हैं।
ब्रिटिश भारत में हुआ था जन्म
डॉ. प्रसाद का जन्म भोजपुर जिले के दुल्लमचक गांव में 2 जनवरी 1941 में हुआ था। उनके पिता गोविंद प्रसाद गांव के जमींदार थे। इसलिए उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा आरा में ही बहुत ही अच्छे ढंग से हुई। उच्च शिक्षा पटना विश्वविद्यालय में हुई, जहां 1963 ई. में इन्होंने हिंदी स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। पद्मावत का सांस्कृतिक विश्लेषण विषय पर इन्हें डी.लिट की उपाधि प्राप्त हुई। इन्होंने मगध विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों में 1963 से लेकर 1966 तक अध्यापन किया। इसके बाद 1966 से 1983 तक सिंदरी कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक रहे। फिर इनका स्थानांतरण रांची कॉलेज के हिंदी विभाग में हुआ, जहां से हिंदी विभागध्यक्ष पद से ही 2001 में वे सेवानिवृत्त हुए। डॉ महाकालेश्वर प्रसाद की कृतियों मे प्रमुख हैं जायसी कालीन भारत, पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा : व्यक्तित्व और कृतित्व, महेश नारायण कृत स्वप्न (संपादित), हिंदी व्याकरण कोश तथा हिंदी व्याकरण कौमुदी।
जमशेदपुर में होगा अंतिम संस्कार
परिवार जनों के अनुसार डॉ. प्रसाद का अंतिम संस्कार जमशेदपुर में ही होगा। उनकी एक पुत्री अमेरिका में अपने पति के साथ रहती है, जिसे सूचना दे दी गयी है और वह भी जमशेदपुर पहुंच रही है। उनके आकस्मिक निधन पर रांची में शोक की लहर छा गई है। उनके निधन पर डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डा तपन कुमार शांडिल्य हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ जंग बहादुर पाण्डेय, डॉ नागेश्वर सिंह तथा उनके शोध छात्र डा विनय कुमार पांडेय ने गहरी शोक संवेदना प्रकट की है और कहा है कि उनके निधनं से हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति हुई है।वे एक कुशल प्राध्यापक और नेक दिल इंसान थे।