Wednesday, September 20, 2023

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लोकतंत्र के सजग प्रहरी थे डॉ राम मनोहर लोहिया : जंग बहादुर पाण्डेय

डॉ जंग बहादुर पांडेय

कदम ऐसे चलो की निशान बन जाए।

काम ऐसा करो की पहचान बन जाए।

जिंदगी तो सभी जी लेते हैं,

पर जिंदगी ऐसी जियो कि मिसाल बन जाए।

इन पंक्तियों को चरितार्थ करनेवाले भारतीय राजनीति में विरले ही राजनीतिज्ञ हैं और उन विरलों में एक हैं डा राम मनोहर लोहिया। डॉ राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जनपद के अकबरपुर में एक साधारण परिवार में हुआ था।उनकी प्रारंभिक शिक्षा अकबरपुर में और उच्च शिक्षा कोलकाता विश्वविद्यालय से हुई जबकि डॉक्टरेट की उपाधि उन्होंने जर्मनी से प्राप्त की। देश के बड़े समाजवादी लोकप्रिय नेता डा राम मनोहर लोहिया की सियासी कर्मभूमि इत्र नगरी कन्नौज रही है।यहां की लोक सभा सीट के लिए हुए पहले चुनाव में यहां की आवाम ने उनको सिर आंखों पर बैठाया था। मात्र तांगा और बैलगाड़ी पर प्रचार कर वे चुनाव जीत गये थे।दूसरी जगह से आकर भी उन्होंने अपनी सादगी और देसी अंदाज से यहां के वोटरों पर गहरी छाप छोड़ी और अपना पहला सांसद चुन लिया। सत्ता को सड़क से सदन तक ललकारने के अपने अलग अंदाज की वजह से डॉ राम मनोहर लोहिया अब भी लोगों के जेहन में हैं।कन्नौज के बुजुर्ग बताते हैं कि उनकी सादगी और देसीपन लोगों को पसंद आती थी।उनका सादगी भरा खांटी देसी अंदाज ही तब के  लोगों को इस कदर भाया कि चाहने वाले मीलों पैदल चलकर उन्हें देखने-सुनने पहुंचते थे। वे बैलगाड़ी और तांगा से ही प्रचार करने निकलते थे।इस दौरान जहाँ लोग मिल जाते,चारपाई पर बैठकर सभा कर लेते। सियासत में ईमानदारी और जरूरत मंदों की आवाज उठाने की हिमायत करते थे। इससे गांव-गांव उनको चाहने वाले बन गये। ऐसी परिस्थिति में सीमा हीन नैतिक अधः पतन, राजनैतिक कदाचार, देश वासियों की भीषण दुर्दशा और विश्व के विनाश के मुहाने पर पहुंच जाने के इस नाज़ुक दौर में सम्पूर्ण कौशल की सभ्यता विकसित करने वाले मनीषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं पूर्व सांसद आधुनिक भारत की राजनीति को नयी दिशा देने वाले महान समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया का स्मरण हो जाना स्वाभाविक है। डॉ लोहिया नया समाज बनाना चाहते थे और नया मनुष्य भी। इस लिए वे सामाजिक संस्थाओं को बदलना चाहते थे और व्यक्तित्व के स्तर पर मानसिक चारित्रिक परिवर्तन भी लाना चाहते थे। उन्होंने जाति तोड़ो, ज़नेऊ तोड़ो, वंशवाद के समूल नाश और देशी भाषा तथा मुफ़्त समान शिक्षा , समान नागरिक संहिता , नर-नारी समानता एवं आर्थिक स्वतंत्रता को अपने नीतिगत कार्यक्रमों में शामिल किया था। वे अन्यायी सरकार के बने रहने के पक्षधर नहीं थे; इसीलिए उन्होंने व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन के लिए सप्त क्रांति का नारा दिया था। वे चाहते थे कि देश की आम जनता अपने प्रभाव कारी और अहिंसात्मक आंदोलनों के माध्यम से अन्यायी सरकार को जब चाहे उखाड़ फेंके। इसीलिए उन्होंने प्रतिनिधि वापस बुलाने का अधिकार मांगा था , उनका ही चमत्कार था कि ग़ैर कांग्रेस वाद का नारा बुलंद हुआ और 11 प्रांतो में ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन 1967 में हुआ था। उनका मानना था कि सत्य को किसी एक पहलू या कोण से ही जाना जा सकता है । इसका अर्थ यह नहीं कि सत्य आंशिक होता है। सत्य या तो पूर्ण होता है या वह सत्य नहीं होता है। अन्याय के विरुद्ध आंदोलन, प्रदर्शन , घेराव और सत्याग्रह तथा सविनय अवज्ञा, फावड़ा और हल उनके शस्त्र थे । वे स्वयं नेतृत्व करते थे और जेल जाते थे। देश में जब तक राजनीतिक’ आर्थिक और सामाजिक , शैक्षणिक विषमता बनी रहेगी, सत्ता और सम्पत्ति का विकेंद्रीकरण नहीं हो जाता, डॉ लोहिया की प्रासंगिकता बनी रहेगी। चित्रकूट की पावन भूमि पर अखिल भारतीय रामायण मेला के संकल्पक डा राम मनोहर लोहिया ही थे। उनका मानना था कि रामायण की संस्कृति लोगों को जोड़ती है और नैतिकता का पाठ पढ़ाती है।भारत का चतुर्दिक विकास तब तक संभव नहीं है जब तक लोगों में सत्य, तप, त्याग, ईमानदारी,सहिष्णुता और कर्मठता की भावना का समावेश नहीं होगा और यह काम केवल रामायण ही कर सकती है,क्य़ोंकि विंदु जी महाराज का यह पद डा लोहिया बराबर कहा करते थे

हमें निज धर्म पर चलना बताती रोज रामायण।

सदा शुभ आचरण करना सिखाती रोज रामायण॥

जिन्हें संसार सागर से,उतर कर पार जाना है।

उन्हें सुख से किनारे पर लगाती रोज रामायण॥

कहीं छवि विष्णु की बाकी, कहीं शंकर की है झाँकी।

हृदय आनंद झूले पर, झुलाती रोज रामायण॥

सरल कविता के कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का।

जहाँ प्रभु प्रेम का दर्शन कराती, रोज रामायण॥

कभी वेदों के सागर में, कभी गीता की गंगा में।

कभी रस ‘बिन्दु’ में मन को डुबोती रोज रामायण।

ऐसी आध्यात्मिकता,भौतिकता और सामाजिकता के विग्रह डॉ राम मनोहर लोहिया जी का आकस्मिक निधन 57 वर्ष की आयु में 12 अक्टूबर 1967 को दिल्ली में हो गया। उनके निधन पर उर्दू के प्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी की वे पंक्तियां याद आ रही हैं,जो उन्होंने  भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के निधन पर कहीं थीं

तेरे गम ने ऐसा गम दिया है,

दिल दाग-दाग है।

लाखों चिराग घर में हैं,

फिर भी घर बे चिराग है।

डॉ लोहिया की 113 वीं  जयंती पर उनको शत-शत नमन।

लोखक : ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय कोरापुट के हिन्दी के विजिटिंग प्रोफेसर हैं और न्यूजवाणी के सलाहकार संपादक हैं।

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