ओडिशा : नेताजी सुभाष चंद्र बोस अमर स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रभक्त थे। भारत भूमि ने अपने जिन महापुरूषों को जन्म देकर मानवता का कल्याण केतु फहराया है, उनमें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नाम अन्यतम है।सोमवार को ये बातें ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ जेबी पांडेय ने कहीं।वे विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। श्री पांडेय ने कहा कि मातभूमि के आह्वान पर अपने समस्त सुख साम्राज्य को स्वाहा करने वाले तथा वैभव और विलास पूर्ण जीवन का परित्याग कर कुलिश की नोक पर मचलने वाले नेताजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महारथियों की पहली पंक्ति में गिने जाने योग्य हैं। नेताजी ने भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 5 जुलाई 1943 को आजाद हिंद फौज का गठन किया। इसी सेना ने 1943 से 1945 तक शक्तिशाली अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध किया और उन्हें भारत की स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए मजबूर कर दिया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ चक्रधर त्रिपाठी ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा प्रांत के कटक शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार में 23 जनवरी 1897 में हुआ था।इनके पिता का नाम राय बहादुर जानकी दास बोस तथा माता का नाम प्रतिभा देवी था।इनके पिता बंगाल प्रांत के 24 परगना जिले के कोदालिया नामक गांव के निवासी थे।वे अपनी प्रतिभा के बदौलत कटक नगरपालिका के चेयरमैन बने तथा नगर के प्रतिष्ठित वकीलों में उनकी गणना होती थी।नेताजी पराक्रमी महापुरुष थे और उन्होंने अपने पराक्रम से वह सब कुछ किया जिससे भारत मां आजाद हो सकीं। उन्होंने विद्यार्थियों को नेता जी की तरह राष्ट्र भक्त और पराक्रमी बनने का आह्वान किया। कार्यक्रम में बायोडायवर्सिटी डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉ एसके पलीता ने कहा कि विश्वविद्यालय में पहली बार नेताजी की जयंती मनाई जा रही है यह प्रसन्नता का विषय है और इसका श्रेय कुलपति डॉ चक्रधर त्रिपाठी को जाता है। वहीं, विशिष्ट अतिथि के रूप में हिंदी विभाग के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ हेमराज मीणा ने कहा कि नेताजी के जीवन पर देशबंधु चितरंजन दास के त्याग और तपस्या का गहरा प्रभाव पड़ा।नेताजी उन्हें गुरु की तरह पूजते रहे और उनके स्वराज दल के कार्यो में पूरी सहायता करते रहे।अपने राष्ट्र प्रेम के कारण थोड़े ही दिनों में नेताजी ब्रिटिश सरकार की शनि दृष्टि के शिकार हुए और उन्हें आतंकवाद को प्रोत्साहित करने के आरोप में 25 अक्टूबर 1924 को माडले जेल में बंद कर दिया गया।फिर तो वे कई बार जेल गए। परंतु अंग्रेजों की स्वाधीनता स्वीकार नहीं की। इसी तरह विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए संस्कृत विभाग के अतिथि प्राध्यापक डॉ एनसी पंडा ने कहा कि नेताजी अपने राष्ट्र प्रेम के कारण भारतीयता की पहचान बन गए थे।भारतीय युवक उनसे राष्ट्र के लिए मर मिटने की प्रेरणा ग्रहण करते थे।जय हिंद का नारा नेताजी ने दिया था और नेता संज्ञा उनको पाकर सार्थक हो गई।उनका कहना था “तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूंगा।नेताजी जैसे राष्ट्र भक्तों पर सदैव भारत को नाज रहेगा। कार्यक्रम में डॉ आलोक बराल, डॉ गणेश साहू, डॉ रूद्राणी मोहंती, डॉ हिमांशु शेखर महापात्र, डॉ मैत्रेयी, डॉ बरखा, डॉ संजीत कुमार दास, डॉ सौरभ गुप्ता, डॉ रमेंद्र पाढ़ी, डॉ वीरेन्द्र कुमार सारंगी, डॉ आदित्य नारायण दास, डॉ चक्र पाणि पोखरेल, डॉ श्रीनिवासन, डॉ काकोली बनर्जी, डॉ कपिल खेमुंदु, डॉ नुपूर पट्टनायक, डॉ मयूरी मिश्रा, डॉ अप्पा साहब, प्रदीप सामंत राय, प्रशांत कुमार नायक तथा पीआरओ फागू नाथ भोई उपस्थित थे। कार्यक्रम में सरस्वती वंदना भारती ने तथा आगत अतिथियों का स्वागत डॉ दुलुमनि तालुकदार ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ रानी सिंह ने, संयोजन डा संजीत कुमार दास ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ सौम्य रंजन दास ने किया।