डॉ जंगबहादुर पांडेय
किसी को समय बड़ा बनाता है और कोई समय को बड़ा बना देता है। कुछ लोग समय का सही मूल्यांकन करते हैं और कुछ आने वाले समय का पूर्वाभास पा जाते हैं,तो कुछ लोग परत दर परत तोड़कर उसमें वर्तमान के लिए ऊर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबराकर अतीत की ओर भाग जाते हैं। अमर स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामविलास सिंह कभी समस्याओं से विमुख नहीं हुए और जब तक आजादी नहीं मिली चैन की नींद नहीं सोए।
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।।
राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से उपर्युक्त पंक्तियों में जिन भावों की अभिव्यक्ति की है ,उसके जीवंत प्रतीक थे अमर स्वतंत्रता सेनानी स्व.राम विलास बाबू। जो भले ही स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद नहीं हुए हों, लेकिन उन्हें शहादत के लिए साहस और दिल में सच्चा मान जरूर था। बाबू रामविलास सिंह जी का जन्म बिहार प्रांत के जहानाबाद जिला अंतर्गत मखदुमपुर प्रखंड के खलकोचकग्राम में 10 फरवरी 1894 को एक संभ्रांत और किसान परिवार में हुआ था तथा स्वर्गारोहण 7 सितंबर 1994 को। इनके पिता का नाम साधु शरण सिंह तथा माता का नाम शारदा देवी था। अमर स्वतंत्रता सेनानी रामविलास बाबू आजादी की लड़ाई में न जाने कितनी बार जेल गए परंतु जब तक भारत आजाद नहीं हुआ, वे चैन की नींद नहीं सो सके। इतिहास साक्षी है कि जब 1942 की क्रांति के समय गया के कलेक्ट्रेट पर अंग्रेजी साम्राज्य का यूनियन जैक पहरा रहा था और जिसकी रक्षा के लिए पुलिस और फौज की सारी गारद मुस्तैद थी, उस वक्त जिस नौजवान ने छत के ऊपर चढ़कर अंग्रेजों का यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहराने का साहस दिखाया था उसी युवक का नाम था देशरत्न बाबू रामविलास सिंह।अंग्रेजों ने रामविलास बाबू को गिरफ्तार कर जेल में डालना ही काफी नहीं समझा, बल्कि उनको और भी यातनाएं दी गई लेकिन उन्होंने देश की आजादी के लिए उफ़ तक नहीं किया। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, उनका सपना मानो साकार हुआ। इसी15 अगस्त 1947 को विदेशी शासन के काले बादल छंटे थे, विदेशियों के अत्याचारों का करका पात बंद हुआ था। उनके शोषण का शोणित स्राव रुका था, उस दिन की उषा वंदिनी नहीं थी, उस दिन की सुहावनी किरणों पर दासता की कोई परछाई नहीं थी, उस दिन कहीं भी गुलामी की दुर्गंध नहीं थी। उस दिन का सिंदूरी सवेरा पक्षियों की चहचहाहट और देशवासियों की खिलखिलाहट से अनुगूंजित हो रहा था।जनजीवन ने मुद्दत के बाद नई अंगड़ाइयां ली थी, एक नई ताजगी का ज्वार सर्वत्र लहरा रहा था। रामविलास बाबू चाहते तो स्वतंत्रता के बाद ऊंचा से ऊंचा पद और अधिक से अधिक पैसा प्राप्त कर सकते थे, लेकिन उन्हें पद और पैसा के लिए कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी।वे तो तप, त्याग एवं सेवा की प्रतिमूर्ति थे। वे जीवन भर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे, स्वामी सहजानंद सरस्वती तथा सर गणेश दत्त एवं बिहार केशरी श्रीकृष्ण सिन्हा के रचनात्मक कार्यों में निरंतर लगे रहे। उन्होंने ना घर की चिंता की न परिवार की अपितु उनके समक्ष राष्ट्रहित ही सर्वोपरि रहा ।ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है
नमन उन्हें मेरा शत बार।
सूख रही है बोटी-बोटी,
मिलती नहीं घास की रोटी,
गढ़ते हैं इतिहास देश का, सहकर कठिन सुधा की मार।
नमन उन्हें मेरा शत बार।
जिनकी चढ़ती हुई जवानी, खोज रही अपनी कुर्बानी, जलन एक जिनकी अभिलाषा, मरण एक जिनका त्योहार।
दुखी स्वयं जग का दुख लेकर, स्वयं रिक्त सबको सुख देकर,
जिनका दिया अमृत जग पीता, कालकूट जिनका आहार।टेक
वीर तुम्हारा लिए सहारा,
टिका हुआ है भूतल सारा,
होते तुम ना कहीं तो कब का, उलट गया होता संसार।
चरण धूलि दो शीश लगा लूं,
जीवन का बल तेज जगा लूँ,,
मैंन निवास जिस मुक स्पन का,
तुम उसके सक्रिय अवतार।
नमन उन्हें मेरा सत बार।
भारतीय जनता के लिए राम बिलास बाबू के लिए राग (प्रेम) था और ब्रिटिश हुकूमत के लिए आग (क्रोध) था। ऐसे राग और आग के विग्रह के स्वतंत्रता सेनानी के लिए राष्ट्रकवि दिनकर ने अपनी लेखनी से जय बोलने का अनुरोध किया है क्योंकि दिनकर जानते थे कि सती संत और शूर का गुणगान करने पर लेखनी धन्य हो जाती है
कलम आज उनकी जय बोल!
जला अस्थियां बारी-बारी,
छिटकाई जिसने चिनगारी।
जो चढ़ गये पुण्य वेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल!
कलम आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बेचारा।
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य चंद्र भूगोल खगोल।
कलम आज उनकी जय बोल।
रामविलास बाबू स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ योद्धा रहे हैं। लिए गए संकल्प से वे कभी भी पीछे नहीं मुड़े। चाहे कितनी ही विपत्तियां राह में रोड़े बनकर आईं, लेकिन वे ना तो मुड़े न ही पीछे हटे। ऐसे ही भारत मां के कर्म वीरों के लिए खड़ी बोली के प्रथम महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने लिखा है।
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो,
किंतु उकताते आते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो,
वीर दिखलाते नहीं।
हो गए एक आन में,
उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में,
वे ही मिले फूले फले।।
भारत के ऐसे कर्मयोगी पर भारतवासियों को नाज और ताज है। 1972 में स्वतंत्रता की 25 वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाबू रामविलास सिंह जी को बिहार के गया के गांधी मैदान की महती सभा में अपने कर कमलों द्वारा ताम्रपत्र, रेशम का शॉल, एवं खादी के सूत की माला पहनाकर कर सम्मानित किया था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के पश्चात् बने भारत सरकार के प्रधानमंत्री श्री मोरारजी भाई देसाई ने गया के गांधी मैदान की एक सभा में ही बाबू रामविलास सिंह जी को राष्ट्र रत्न एवं जन नायक की उपाधि से नवाजा था। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी रहा है। उनके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं एक तरफ वे आजादी के हिमायती थे तो दूसरी तरफ वे नारी का भी उद्धार चाहते थे। अतः स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन में उन्होंने सहयोग किया। जिसके फलस्वरूप आजादी के बाद बिहार में सर्वप्रथम जमीदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और खेत खलिहान के ऊपर किसानों का वाजिब हक प्राप्त हुआ। 1965 में जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था, तो रामविलास बाबू को लगा कि उनके सपनों का भारत साकार हो रहा है। रामविलास बाबू निष्काम कर्मयोगी थे। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात कर्म की कुशलता का नाम ही योग है। रामविलास बाबू जीवन पर्यंत अपने कर्म से विमुख नहीं हुए अपितु अपने कर्मों को कुशलता पूर्वक निष्पादित करते रहे। संस्कृत की नीति परक सूक्ति में कहा गया है कि स्वर्ग से आए हुए जीवात्मा में 4 लक्षण पाए जाते हैं: दानशीलता, वाणी में मधुरता, देवार्चनता और आचार्यता:
स्वर्गाच्युतानामिह जीवलोके,
चत्वारि चिह्नानि वसंति देहे।
दान प्रसंगो, मधुरा च वाणी,
देवार्चनं पंडिततर्पणश्च।।
चाणक्य नीति श्लोक में यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार सोने की परीक्षा घर्षण, छेद, ताप और पीटने से होती है ,उसी प्रकार श्रेष्ठ पुरुष की परीक्षा उसकी विद्वता, सुशीलता कुलीनता और कर्मठता से होती है-:
यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते, निघर्षणाच्छेदेनतापताडनै
तथा चतुर्भि: पुरुष:परीक्ष्यते,
श्रुतेन,शीलेन,कुलेन कर्मणा:।।
इन कसौटियों पर रामविलास बाबू सोलह आने खरे उतरते हैं। ऐसे नश्वर संसार में थोड़े नरवर हैं जो मरणोपरांत भी अमर हैं।महाकवि तुलसी ने इसकी घोषणा की है ते नरवर थोड़े जग माही। ऐसे महान अमर स्वतंत्रता सेनानी का परलोक गमन 7 सितंबर 1994 को हो गया। उनके पौत्र राष्ट्र सृजन अभियान नई दिल्ली के संस्थापक सह राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रद्युम्न कुमार सिन्हा एवं राष्ट्रीय सचिव ललितेश्वर कुमार और राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ के एन.राय कमलेश उनके सपनों को साकार करने में लगे हुए हैं, यह प्रसन्नता का संदर्भ है। उनके 129 वें जन्मदिन पर उनको कोटिशः नमन, वंदन और अभिनंदन है।
जय हिंद, जय राम बिलास बाबू
लेखक : केंद्रीय विश्वविद्यालय कोरापुट में हिन्दी के विजिटिंग प्रोफेसर हैं।