नई दिल्ली । केंद्र सरकार चीन के मंसूबों पर लगाम कसने के लिए पूर्वोत्तर में 40 हजार करोड़ रुपए की लागत से फ्रंटियर हाईवे बनायेगी। 2 हजार किलोमीटर लंबा यह हाईवे अरुणाचल प्रदेश की लाइफ लाइन और चीन के सामने भारत की स्थायी जमीनी पोजिशन लाइन भी साबित करेगा। यह भारत-तिब्बत के बीच खींची गई सीमा रेखा मैकमोहन लाइन से होकर गुजरेगा।अंग्रेजों के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन ने इसे सीमा के तौर पर पेश किया था और भारत इसे ही असली सीमा मानता है जबकि चीन खारिज करता रहा है। इस हाइवे का निर्माण सीमा सड़क संगठन और नेशनल हाईवे अथॉरिटी मिलकर करेंगे। सेना इसके लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट देगी। फ्रंटियर हाईवे तवांग के बाद ईस्ट कामेंग, वेस्ट सियांग, देसाली, दोंग और हवाई के बाद म्यांमार तक पहुंचेगा। इससे चीन ही नहीं म्यांमार की सीमा भी सुरक्षित हो सकेगी और सीमाई क्षेत्रों से पलायन रोकने में मदद मिलेगी।हाईवे के इर्दगिर्द वाइब्रेंट विलेज विकसित होने से उन भुतहा गांवों पर नजर रखी जा सकेगी, जिन्हें चीन बसा रहा है।अरुणाचल प्रदेश में दो राष्ट्रीय राजमार्ग पहले से हैं। इनमें से एक ट्रांस अरुणाचल राजमार्ग और दूसरा ईस्ट-वेस्ट इंडस्ट्रियल कॉरिडोर है। इस तीसरे राजमार्ग के साथ राज्य के सभी कॉरिडोर आपस में मिल जाएंगे। इससे दूर के इलाकों तक रोड कनेक्टिविटी सुनिश्चित हो सकेगी।यह राजमार्ग अरुणाचल के सभी अहम सामरिक क्षेत्रों को जोड़ेगा। इसमें तवांग की के मागो-थिंगबू को विजयनगर से होते हुए अपर सुबनसिरी, दिबांग घाटी, छागलागाम और किबिथू के बीच हाईवे कनेक्टिविटी दी जायेगी।