कोरापुट : कालिदास निर्विवाद रूप से संस्कृत वांड्मय के सर्वश्रेष्ठ महाकवि है।अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में वे भले ही निरक्षर रहे हों पर जीवन के उत्तरार्द्ध में मां काली की कृपा और अपनी साधना से वे महाकवि बन गये। शुक्रवार को ये बातें डॉ जेबी पांडेय ने कहीं। वे उड़ीसा केंद्रीय विश्वविद्यालय कोरोपुट के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “कालिदास की कालजयिता” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता विभाग के वरीय प्राध्यापक डॉ वीरेन्द्र कुमार सारंगी ने की। कार्यक्रम में डॉ जेबी पाण्डेय ने कहा कि साधना के उपरांत अपनी पत्नी विद्योत्तमा से ‘अनावृत कपाटं देहि’ की याचना की और इसके उत्तर में उनकी पत्नी ने कहा- अस्ति कश्चित् वाग्विशेष:।अपनी धर्म पत्नी के द्वारा गहे गये इस एक वाक्य के तीन शब्दों पर कालिदास ने तीन काव्यों का श्रीगणेश किया।अस्ति से कुमार संभव की और कश्चित् से मेघदूतम की। इसी तरह वाग्विशेष से रघुवंश की। डॉ पांडेय ने रघुवंश की चर्चा करते हुए महाराज दिलीप और सुदक्षिणा की गो-सेवा पर गहन प्रकाश डाला और कहा कि महाराज दिलीप नंदिनी के खड़ा हो जाने पर खड़े हो जाते थे,चलने पर चलते थे,बैठने पर बैठ जाते थे ,जल पीने पर जल पीते थे और यहां तक कि महाराज दिलीप ने नंदिनी का अनुकरण वैसे ही किया जैसे शरीर का पीछा छाया करती है।
स्थित:स्थितां,उच्चलित:प्रयातां,
निषेदुषीं आसन बंध धीर:।
जलाभिलाषी जलमाददानं,
छायैव ताम भूपति:अन्वगच्छत।
संस्कृत वाड्मय में कालिदास उपमा के आचार्य कहे जाते हैं। संस्कृत में सूक्ति है
उपमा कालिदासस्य, भारवेर्वथ गौरवम्।
दण्डिन:पद लालित्यं,माघे संति त्रयो गुणा:।
अर्थात् कालिदास उपमा के,महाकवि भारवि अर्थ गौरव के,आचार्य दण्डी पद लालित्य के और महाकवि माघ तीनों गुणो से युक्त हैं। कालिदास की उपमाएं अपने आप में अनुपम और अद्वितीय हैं।संचारिणी दीप शिखा की उपमा के कारण वे दीप शिखा के महाकवि कहे जाते हैं। कालिदास की कालजयिता पर प्रकाश डालते हुए डा पाण्डेय ने कहा कि अपनी रचनाधर्मिता की श्रेष्ठता के कारण काल अपने गाल में कालिदास को नहीं ले सका और वे काल के भाल पर अमिट चिन्ह छोड़ कर वे कालजयी हो गये।संस्कृत में कालिदास की प्रशंसा में यह श्लोक अक्सर कहा जाता है कि
पुरा कवीनां गणना प्रसंगे,
कनिष्ठिका धीष्ठित कालिदास:।
अद्यापि तत्तुल्य कवेर्भावत्।
अनामिका सार्थवती बभूव:।
अर्थात् पुराने कवियों की गणना के प्रसंग में कालिदास कानी उंगली पर बैठ गये,आज भी उनके समतुल्य कवियों का अभाव है,अत:दूसरी उंगली का अनामिका नाम सार्थक है।यह सूक्ति कालिदास की श्रेष्ठता और कालजयिता का सबल प्रमाण है। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डॉ वीरेन्द्र कुमार सारंगी ने कालिदास की कालजयिता का अनुमोदन किया।उन्होंने कहा कि कालिदास जैसे कवि पर हमें गर्व है।वहीं, हिंदी विभाग की विदुषी प्राध्यापिका डॉ रानी सिंह ने अपनी गरिमाययी उपस्थिति से संगोष्ठी को गरिमा प्रदान की।सरस्वती वंदना सुश्री शुभश्री ने तथा संचालन डॉ श्रीनिवासन सोय ने किया। कार्यक्रम में आगत अतिथियों का स्वागत डॉ चक्रपाणि पोखरेल ने और धन्यवाद ज्ञापन डा आदित्य नारायण दास ने किया।राष्ट्र गान से संगोष्ठी समाप्त हुई।