कोरापुट : भारतीय ज्ञान परंपरा से ही मनुष्य का विकास हो सकता है। इससे ही मनुष्य का उद्धार संभव है। ये बातें ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के वीसी डॉ प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी ने कहीं। वे विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अध्यापक अपने समाज का प्रतिनिधित्व करता है और वह अध्यापक नाम को तभी सार्थक कर सकता है जब वह अपने आचरण को नीति वाक्यों के अनुरुप बनाता है। मनुष्य को मनुष्य बनाने का साधन केवल संस्कृत में ही निहित है। इस प्रकार की अद्वितीय ज्ञान परंपरा जो व्यवहारिक है और मनुष्य के निर्माण का परम साधन है उसका अनुपालन अवश्य होना चाहिए। इसी तरह सम्मेलन में आए हुए अतिथियों ने संस्कृत की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्कृत में ज्ञान-विज्ञान निहित है और इसे युवाओं की ओर से अनुसंधान के जरिये लोगों के सामने प्रस्तुत करने की जरूरत है। इसका प्रयोगात्मक अध्ययन होना चाहिए। सम्मेलन में आचार्य सदानंद दीक्षित ने कहा कि संस्कृत के विकास और इसकी व्यापकता के लिए सरकार को अतिरिक्त फंड की व्यवस्था करनी चाहिए। सम्मेलन में चयनित 90 से अधिक शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। सम्मेलन में उद्घाटन से लेकर समापन तक नौ सत्रों में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इस दौरान सम्मेलन की स्मारिका का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ चक्रपाणी पोखरेल और डॉ श्रीनिवास स्वाईं ने किया। वहीं, धन्यवाद ज्ञापन डॉ आदित्य नारायण दास तथा डॉ वीरेंद्र कुमार षाडंगी ने किया। इस अवसर पर डॉ सुधेन्दु मंडल, डॉ आलोक बराल, डॉ संजीत दास, डॉ कोकिला बनर्जी, डॉ रामेंद्र पाढ़ी समेत कई विद्वानों ने अपनी बातें रखीं।